चार धाम यात्रा
त्तराखंड
में गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की
यात्रा को ही चार
धाम की यात्रा माना
जा रहा है जबकि इन
चारों की यात्रा करना
तो एक धाम की
यात्रा ही कहलाती है।
इन्हें छोटा चार धाम कहा जाता है।
छोटा
चार धाम : बद्रीनाथ में तीर्थयात्रियों की अधिक संख्या
और इसके उत्तर भारत में होने के कारण यहां
के वासी इसी की यात्रा को
ज्यादा महत्व देते हैं इसीलिए इसे छोटा चार धाम भी कहा जाता
है। इस छोटे चार
धाम में बद्रीनाथ के अलावा केदारनाथ
(शिव ज्योतिर्लिंग), यमुनोत्री (यमुना का उद्गम स्थल)
एवं गंगोत्री (गंगा का उद्गम स्थल)
शामिल हैं।
क्यों
महत्व रखता है छोटा चार
धाम : उक्त चारों ही स्थान पर
दिव्य आत्माओं का निवास माना
गया है। यह बहुत ही
पवित्र स्थान माने जाते हैं। केदारनाथ को जहां भगवान
शंकर का आराम करने
का स्थान माना गया है वहीं बद्रीनाथ
को सृष्टि का आठवां वैकुंठ
कहा गया है, जहां भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में रहते हैं और 6 माह जागते हैं। यहां बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला
से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। यहां नर-नारायण विग्रह
की पूजा होती है और अखण्ड
दीप जलता है, जो कि अचल
ज्ञानज्योति का प्रतीक है।
केदार
घाटी में दो पहाड़ हैं-
नर और नारायण पर्वत।
विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर
और नारायण ऋषि की यह तपोभूमि
है। उनके तप से प्रसन्न
होकर केदारनाथ में शिव प्रकट हुए थे। दूसरी ओर बद्रीनाथ धाम
है जहां भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। कहते हैं कि सतयुग में
बद्रीनाथ धाम की स्थापना नारायण
ने की थी। भगवान
केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के
बाद बद्री क्षेत्र में भगवान नर-नारायण का
दर्शन करने से मनुष्य के
सारे पाप नष्ट हो जाते हैं
और उसे जीवन-मुक्ति भी प्राप्त हो
जाती है। इसी आशय को शिवपुराण के
कोटि रुद्र संहिता में भी व्यक्त किया
गया है
1. बद्रीनाथ
धाम : हिमालय के शिखर पर
स्थित बद्रीनाथ मंदिर हिन्दुओं की आस्था का
बहुत बड़ा केंद्र है। यह चार धामों
में से एक है।
बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य में अलकनंदा नदी के किनारे बसा
है। यह मंदिर भगवान
विष्णु के रूप में
बद्रीनाथ को समर्पित है।
बद्रीनाथ मंदिर को आदिकाल से
स्थापित और सतयुग का
पावन धाम माना जाता है। इसकी स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने की थी।
बद्रीनाथ के दर्शन से
पूर्व केदारनाथ के दर्शन करने
का महात्म्य माना जाता है।
चार
धाम में से एक बद्रीनाथ
के बारे में एक कहावत प्रचलित
है कि 'जो जाए बदरी,
वो ना आए ओदरी'। अर्थात जो
व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर
लेता है, उसे पुन: उदर यानी गर्भ में नहीं आना पड़ता है। मतलब दूसरी बार जन्म नहीं लेना पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार मनुष्य को जीवन
में कम से कम
दो बार बद्रीनाथ की यात्रा जरूर
करना चाहिए।
मंदिर
के कपाट खुलने का समय : दीपावली
महापर्व के दूसरे दिन
(पड़वा) के दिन शीत
ऋतु में मंदिर के द्वार बंद
कर दिए जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता
रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर
भगवान के विग्रह एवं
दंडी को 6 माह तक पहाड़ के
नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं।
6 माह बाद अप्रैल और मई माह
के बीच केदारनाथ के कपाट खुलते
हैं तब उत्तराखंड की
यात्रा आरंभ होती है।
6 माह
मंदिर और उसके आसपास
कोई नहीं रहता है, लेकिन आश्चर्य की 6 माह तक दीपक भी
जलता रहता और निरंतर पूजा
भी होती रहती है। कपाट खुलने के बाद यह
भी आश्चर्य का विषय है
कि वैसी ही साफ-सफाई
मिलती है जैसे छोड़कर
गए थे।
2. जगन्नाथ
पुरी : भारत के ओडिशा राज्य
में समुद्र के तट पर
बसे चार धामों में से एक जगन्नाथपुरी
की छटा अद्भुत है। इसे सात पवित्र पुरियों में भी शामिल किया
गया है। 'जगन्नाथ' शब्द का अर्थ जगत
का स्वामी होता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय
का मंदिर है, जो भगवान विष्णु
के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है।
इस
मंदिर का वार्षिक रथयात्रा
उत्सव प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य
देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा
तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों
में विराजमान होकर नगर की यात्रा को
निकलते हैं।
3. रामेश्वरम
: भारत के तमिलनाडु के
रामनाथपुरम जिले में समुद्र के किनारे स्थित
है हिंदुओं का तीसरा धाम
रामेश्वरम्। यह हिंद महासागर
और बंगाल की खाड़ी से
चारों ओर से घिरा
हुआ एक सुंदर शंख
आकार द्वीप है। रामेश्वरम् में स्थापित शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना
जाता है। भारत के उत्तर में
केदारनाथ और काशी की
जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् की है। मान्यता
अनुसार भगवान राम ने रामेश्वरम् शिवलिंग
की स्थापना की थी। यहां
राम ने लंका पर
चढ़ाई करने से पूर्व एक
पत्थरों के सेतु का
निर्माण भी करवाया था,
जिस पर चढ़कर वानर
सेना लंका पहुंची। बाद में राम ने विभीषण के
अनुरोध पर धनुषकोटि नामक
स्थान पर यह सेतु
तोड़ दिया था।
4. द्वारका
: गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे
पर समुद्र के किनारे स्थित
चार धामों में से एक धाम
और सात पवित्र पुरियों में से एक पुरी
है- द्वारका। मान्यता है कि द्वारका
को श्रीकृष्ण ने बसाया था
और मथुरा से यदुवंशियों को
लाकर इस संपन्न नगर
को उनकी राजधानी बनाया था।
कहते
हैं कि असली द्वारका
तो समुद्र में समा गई थी लेकिन
उसके अवशेष के रूप में
आज बेट द्वारका और गोमती द्वारका
नाम से दो स्थान
हैं। द्वारका के दक्षिण में
एक लंबा ताल है, इसे गोमती तालाब कहते हैं। इसके नाम पर ही द्वारका
को गोमती द्वारका कहते हैं। गोमती तालाब के ऊपर नौ
घाट हैं। इनमें सरकारी घाट के पास एक
कुंड है जिसका नाम
निष्पाप कुंड है। इसमें गोमती का पानी भरा
रहता है।
उक्त
चारों धाम के मार्ग में
देश के सभी प्रमुख
तीर्थ स्थल पड़ते हैं जिससे उन सभी के
दर्शन भी हो ही
जाते हैं।
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